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हाथ तो मिला लो ......
जीवित पत्थर के सनम,
खुनी पंजे जिनके
टूटे न जो लूट लिए
भाग्य उनके
अपनी जहां के मालिको को
सुलगते घाव दिए
छीन गयी उम्मीदे
अरमानो की बस्ती में
आग भर दिए
सुधि में जहां ठगा गया ,
पत्थर दिलो द्वारा कैद नसीब
थोपी गरीबी को भाग्य कहा गया
खुद का वास्ता भी नहीं
डरा सका पत्थरो को
लूटते रहे कातिल
करते रहे बदनाम किस्मत को
झरे झरझर श्रम के शोले
ठगों ने झोंके
गरीबो की किस्मत में ओले
खुद का वास्ता ये ठगी
किस्मत वालो
अपनी जहां के मालिक
मिल जायेगा तुम्हारा लूटा हक़
आपस में हाथ तो मिला लो ..............डॉ नन्द लाल भारती 13.4.2013
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