अपयश/कविता
दिल की बगिया में बोये सपने
धुधली निगाहों में बसे रह गए
काश हकीकत में होते कुसुमित
सपनों के सौदागर
खंजर भांजते चले गए
पसीने की सुगंध साथ थी जो
पहचान गढ़ती रही वो
अपनो की भीड़ में पराये हो गए
नसीब के दुश्मन
जाति -धर्म के चक्रव्यूह
बिछाते रह गए
सपने मरे बेमौत कर्मफल लूटा
कर्म की जिद थी कमेरी दुनिया के आदमी की
धुधली निगाहों में सपने बचे रह गए
ढोंग के पुजारी नसीब के माथे
अपयश मढ़ते रह गए ......डॉ नन्द लाल भारती 30.4 .2013
दिल की बगिया में बोये सपने
धुधली निगाहों में बसे रह गए
काश हकीकत में होते कुसुमित
सपनों के सौदागर
खंजर भांजते चले गए
पसीने की सुगंध साथ थी जो
पहचान गढ़ती रही वो
अपनो की भीड़ में पराये हो गए
नसीब के दुश्मन
जाति -धर्म के चक्रव्यूह
बिछाते रह गए
सपने मरे बेमौत कर्मफल लूटा
कर्म की जिद थी कमेरी दुनिया के आदमी की
धुधली निगाहों में सपने बचे रह गए
ढोंग के पुजारी नसीब के माथे
अपयश मढ़ते रह गए ......डॉ नन्द लाल भारती 30.4 .2013

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