अपना हक़ मांग लो ...
आहे भरी-भरी, श्रम झराझर
उम्मीदों के बसंत हरे-भरे
शोषित आदमी के मुकदर पर
दुश्मनों के तेग खींचे-खींचे ,
हौशले के आगे
तेग के बेग तनिक डरे-डरे |
बदले युग में भी भेदभाव भारी
उत्पीडन शोषण सीनाजोरी |
तांडव है बेख़ौफ़ जारी
तेज कटारी चेहरा बदले
साजिशों का खेल ,सदियों से जारी
अछूत को अछूत,गरीब को गरीब
बनाने का अमानवीय खेल
बदसूरत है जारी ।
शोषित के आगे भय
पीछे विरान दहकते दर्द की परछाई
युग बदल दुनिया सिमटी पर ,
शोषित की नसीब बसंत ना पायी ।
अरे ठगी नसीब के मालिको
शोषितों-वंचितों कलम तो थाम लो
गुनाहगारो को पहचान लो
बदली दुनिया में हक़ जान लो
चेहरा बदलने वालो को
तुम्हारी तरक्की कहाँ बर्दाश्त
अपना हक़ मांग लो ..............डॉ नन्द लाल भारती 14 .4 .2013

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