ये वफ़ा के राही
अपनी धुन में चलते जाना
मुश्किल है डगर
मगर
निशान है छूटते जाना
तुम न रहोगे
दुनिया रहेगी
भले हो दुनिया पराई
इंसानियत के पुजारी
तुम्हे ना भूल पायेगे
ये वफ़ा के राही
तुम अपनी धुन में
औरो के लिए जीए जाना
वक्त की उड़ती रेत पर
तुम्हारा होगा ठिकाना ...डॉ नन्द लाल भारती 30 .04 .2 0 13
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