संकल्प/कविता
नित बे-मौत मरते सपनो
का बोझ थामे
का बोझ थामे
कल की अभिलाषा मे ,जहां खड़ा पड़ा हूँ ,
उम्र के दर्जनों बसंत विरान हुये है वही
उम्र के दर्जनों बसंत विरान हुये है वही
विक्षिप्त भी बुध्दिमान हुये और
ऊपर तक उठ गये वही,
अयोग्य योग्य हुए योग्य तो तरक्कियो पर
कब्जा तक कर लिये जैसे
जातीय योग्यता के तड़के से ,
ऐसा नहीं कि मै अयोग्य हू
तालीम,योग्यता ,बाह्य दुनिया के
दिए गए मान-सम्मान की पूँजी भी है
मेरे पास वही मेरी ताकत
फ़र्ज़ पर फना होने का हौशला भी
फिर भी अयोग्य हो गया हू ,
अपनी जहां मे शोषित पीड़ित
तरक्की से दूर फेंका हाशिये का
आदमी हो गया हूँ
इस सब की पुख्ता वजह भी है
वर्णिक बूढ़ी कुव्यवस्था ,
इस कुव्यवस्था और इसके पहरेदारों ने
छिन लिय है आदमी होने का सुख
छाती पर रख दिया टनो बोझ
शोषण ,अत्याचार ,गरीबी ,भूमिहीनता
बेरोजगारी और जातिवाद का
दहकता हुआ दर्द
दहकता हुआ दर्द
फिर भी मै और मेरी अभिलाषा
जीवित है और रहेगी
क्योंकि शिक्षित हूँ संघर्षरत हू
यही मेरा संकल्प है वही मै भी हूँ …………
डॉ नन्द लाल भारती
15 -एम वीणा नगर ,इंदौर -452010
9 मई 2014
उत्थान की दास्ताँ गढ़ने दे /कविता
बंद मुट्ठियाँ फ़ैलने क्या लगी ,
कि 15 -एम वीणा नगर ,इंदौर -452010
9 मई 2014
उत्थान की दास्ताँ गढ़ने दे /कविता
बंद मुट्ठियाँ फ़ैलने क्या लगी ,
तमाम औजारो के साथ
आदमियत विरोधी सरहदें भी
अब तो आगे आओ
उत्थान की दास्ताँ गढ़ने दे ..........
No comments:
Post a Comment