फ़र्ज़ पर फना हुये जा रहा हूँ /कविता
वही खौफ डंसता रहता है
वही खौफ डंसता रहता है
जहां उम्र के बीते मधुमास
लगना तो चाहिए था स्वर्णिम अच्छा
पर ऐसा नहीं हो सका,
अपनी भेद भरी जहां मे।
अपनी भेद भरी जहां मे।
चाहा था जोड़ लूंगा स्वर्णिम रिश्ता तालीम ,
लगन और कर्म से
लगन और कर्म से
गढ़ दूंगा पहचान था विश्वास
खौफ के साये, टूटती चली जा रही आस ।
महत्व ,गतिशीलता और उद्देश्य
नहीं निखर सके योग्य होकर भी
ऐसे में कैसे,
अच्छा लग सकता है
अच्छा लग सकता है
जिम्मेदारियां है मज़बूरियां है
भेद भरी अपनी जहॉ मे जीने की,
तभी तो खौफ मे ,
जीवन के मधुमास का ज़ारी है हवन
जीवन के मधुमास का ज़ारी है हवन
पल-पल भेद का विषपान करते हुये भी।
जानता हूँ पहचानता हूँ
पीछे के भयावह कब्रस्तान को
आगे आग उगलते रेगिस्तान को
जहां कर्म योग्यता तालीम को मान नही
वर्ण के नाम बदनाम वही
विशेषता श्रेष्ठता पहचान वर्णिक अभिमान
यही ठगा -ठगा संघर्षरत हूँ
जहा उम्र के मधुमास हुये विरान
वही फ़र्ज़ पर फना हुये जा रहा हूँ
डॉ नन्द लाल भारती
15 -एम वीणा नगर ,इंदौर -452010
10 मई 2014
15 -एम वीणा नगर ,इंदौर -452010
10 मई 2014
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