असली लोतंकत्र चाहिए /कविता
अपनी जहां कैसी आज़ादी ………?
कैसा लोकतंत्र ………?
आदमियत पर होता प्रहार निरंतर
कर्मयोगी -श्रमवीर आँका जाता
निम्नतर अक्सर ………
क्या शासन क्या सुशासन
कैसा प्रशासन ………?
अपनी जहां में बस
स्वार्थ- पक्षपात अभियान ………
जातिवाद-नफरत बोये जाते है
सत्ता के सिंहासन पर
लोकतंत्र के पहरेदार
मतलबवश मौन पाये जाते है………
हाशिये का आदमी
नित नए चक्रव्यूह में फंसा
जीता है
मरते सपनो का बोझ
कंधो पर लिए
उम्मीदों में जीता है ………
बहुत हुआ
दर्द का बोझ हो गया है भारी
वंचितो शोषितो तुमसे
गुहार है हमारी ………
अपनी जहां को तुम्हारे
आक्रोश की ज्वाला चाहिए
जिससे पिघल जाए
पाषाण हृदय
क्योंकि
वंचितो शोषितो और
हाशिये के लोगो को
संविधान का असली रूप
असली आज़ादी और
असली लोतंकत्र चाहिए ………
डॉ नन्द लाल भारती 10.10 .2014
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