संविधान का मान बढ़ाओ।/कविता
अपनी आज़ादी के,
सरसठ साल गुजर चुके
मगर शोषित समाज की,
न पूरी हुई आस
संकल्पित शोषित समाज का
विश्वास
देश मान और भारतीय संविधान
संविधान ही तो है जो
चाहत है सबका भला
क्या पुरुष क्या महिला
स्वधर्मी क्या गैर धर्मी
क्या जाति क्या परजाति
देता है सबको स्वतंत्रता
और
समानता का अधिकार
पर क्या सफेदपोश
सामंतवाद की सनक में मदहोश
नहीं चाहते
शोषित समाज का उध्दार
तभी तो आज भी जारी है
शोषण -उत्पीड़न ,अत्याचार
चीर- हरण बलात्कार,जातिवाद भरपूर
हाशिये का आदमी विज्ञानं के युग में
अछूत तरक्की से पड़ा है बहुत दूर
लगता है लोकतंत्र की नकाब ओढ़े
सामंतवादी सत्ता के भूखो के
इरादे नेक नहीं है
वे भेदभाव ,गरीबी, भूमिहीनता
जातीय अंतरद्वन्द चाहते है
सत्ता पर काबिज होने के लिए
सच आज भी ऐसा लगता है
तथाकथित लोकतंत्र के सिपाही
सत्ताधीश लोकतंत्र के आवरण में
दिखावे भर है
सही मायने में वे
सामंतवाद की जकड़बंदी में कसे हैं
निश्चय ही यह मुखौटा साजिश है
ऐसी साजिशो को देश द्रोह
कहा जाना चाहिए
भारतीय व्यवस्था में
ऐसी साजिशो को
बहुजन समाज के अरमानो का खूनी भी
देश के युवाओ जागो
ऐसी साजिशो के खिलाफ
कर दो ऐलान
ताकि बहुजन चल पड़े सरपट
शैक्षणिक सामाजिक और
आर्थिक प्रगति के पथ पर
हे भारत भाग्य विधाता युवा शक्ति
बहुजन समाज की ओर हाथ बढ़ाओ
अपनी आज़ादी और
भारतीय संविधान का मान बढ़ाओ।
डॉ नन्द लाल भारती 13 .10 .2014
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