-राष्ट्र-लोकतंत्र,और संविधान/कविता
आज़ादी और लोकतंतत्र को
लेकर हमने भी
बहुत देखे है सपने
आज़ाद देश अपना संविधान
सत्ताधीश लोग अपने
हाय रे कैदनसीब अपनी
सपने नहीं हो सके अपने
संविधान को राष्ट्रिय धर्मग्रन्थ
और
सत्ताधीशो को जननायक समझा
पर क्या। …?
भ्रष्ट -सत्ताधीश खूनी,
पर वाह रे अपना संविधान
और
संविधान बनाने वाले
संविधान और
संविधान बनाने वालो से
मन नहीं भटका
हम समझ चुके है
संविधान का सच
आज़ादी और लोकतंत्र के
असली मायने
पर मुखौटेधारी काले अंग्रेज
सत्ताधारी लागे बड़े सयाने
खलनायको जान लो
आधुनिक युग समतक्रांति
जातिनिरपेक्षता ,धर्मनिरपेक्षता का
है ऐलान
नहीं चलेंगे अपनी जहां में
जन-राष्ट्र-लोकतंत्र,संविधान
विद्रोही
जो विषधर समान
आओ हम सब भारतवासी
एकटूक कह दे
अरे खलनायको तुम
तोड़ चुके हो विश्वास के हर धागे
सुन लो कान खोलकर अब तुम
जन-राष्ट्र-लोकतंत्र,और
संविधान का सच्चा सिपाही,
युवा होगा आगे-आगे …………
डॉ नन्द लाल भारती 16.10.2014
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