उखाड़ फेंकना है/कविता
हाय रे रूढ़िवादी अपनी जहां
लोकतंत्र का ठौर पुख्ता
सामंतवादी का दिया जख्म
हर वक्त दुखता .........
चेहरा -दर- चेहरा नहीं
छिपा सका आज तक
लोकतंत्र के युग में भी
उग जाते है हैं
विषमता के तेग भयावह
सामंतवादी तपती रेत पर .........
विषमता के अभिशाप से
पीड़ित लोग
लोकतंत्र के साम्राज्य में भी
नहीं बच पा रहे है
शोषण-अत्याचार से .........
सामंतवादी नीति छिन रही है
सकून ,हक़ और
आदमी होने का असली सुख भी .........
रूढ़िवादी अपनी जहां में
ये कैसा आतंक है
पच्चासी प्रतिशत जनसंख्या,
शूद्र है आज भी .........
अरे सामंतवाद के शिकार लोगो
उठो जागो आगे बढ़ो
प्राप्त करना है
सामजिक समानता
और
आर्थिक समानता
उखाड़ फेंकना है
शोषण - सामंतवाद की
हर बुनियादें ,अपनी जहां से
लोकतंत्र के युग में .........
डॉ नन्द लाल भारती 19 .10.2014
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