दलितों अब तो जागो /कविता
अपनी जहा जो
सोने की चिड़िया थी कभी
वही जहां मुर्दाखोरो की
बस्ती हो गयी है
शासन हुआ बौना
दलितों की ज़िंदगी
सस्ती हो गयी है ........
अपने मन में मलाल
आँखों से आंसू झरते है
कभी थ्रेसर में पिसते
कभी आग में भस्म होते
कही माँ-बहनो के आबरू को
मुर्दाखोर नोचते
अट्टहास करते है ........
कौन युग में पहुंच गयी
अपनी जहाँ
दलितों के लहू के प्यासे
मुर्दखोर यहाँ
दलितों के दमन का कारण
जातिवाद
दलितों रूढ़िवादी धर्म से उपजी
जाति को त्यागो ........
दलितों अब तो जागो
जातिवाद का झमेला त्यागो
दलितों संगठित हो जाओ
अपनी जहां
अपना अस्तित्व बचाओ........
दलितों चेतो '
वरना अपनी जहा जो
सोने की चिड़िया थी कभी
वही जहां मुर्दाखोरो की
बस्ती बनी रहेगी
तुम्हारा हक मान-सम्मान
तुम्हारी ज़िंदगी मुर्दाखोरो के लिए
खिलवाड़ का सामान बनती रहेगी........
डॉ नन्दलाल भारती 22.10 2015
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