Tuesday, October 27, 2015

मुर्दाखोरो की बस्ती में/कविता

मुर्दाखोरो की बस्ती में/कविता 
मुर्दाखोरो  की निगरानी में,
छाती पर मरते सपनो का बोझ 
जीवन असुरक्षित हो गया है 
श्रमफल का चीरहरण ,
हक़ का क़त्ल ,
योग्यता का बलात्कार होने लगा है ........
नफ़रत-भेद ,वादो -विवादों का तांडव 
मुर्दाखोरो के बस्ती 
बन चुकी है   कब्रस्तान 
लूट गयी नसीब
मुर्दाखोरो की जहां  में 
ऐसी खूनी जहां को 
अलविदा
 कहने को मन कहने लगा है ........
मुर्दाखोरी की चौकसी गिध्द निगाहें 
शोषित हाशिये के कमजोर आदमी के 
लहू पर टिकी है 
श्रम की उपज हो या कर्म का प्रतिफल 
या योग्यता की दमक 
या जीवन की तपस्या 
मुर्दाखोरो की टोली बोटी-बोटी 
नोचने पर लगी है ........
शोषित हाशिये के आदमी का 
ना कल था ना आज है 
लगता है ना कल रहेगा सुरक्षित 
शोषित हाशिये के लोग
हर और बेदखल है ........
कौन सुने गुहार 
अपनी जहां
मुर्दाखोरो का ठिकाना हो गया है 
शोषित हाशिये के लोगो का 
सांस भरना मुश्किल हो गया है  
मुर्दाखोरो की बस्ती में 
हाशिये के आदमी की 
नसीब का कत्ल 
योग्यता का बलात्कार होने लगा है ........
डॉ नन्द लाल भारती 
13.10.2015     

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