कर दो प्रतिकार /कविता
दलितों की ज़िन्दगी कुत्तो बिल्लियों
जैसी सस्ती कैसे हो गयी
कर्मवीर,श्रमवीर,भाग्य विधाता
राष्ट्र का असली वारिस
धरती से अपनी प्रथम
सूर्योदय के दिन से है नाता ………
दलित कोई विदेशी संतान नहीं
अपनी जहाँ की मॉंटी का है थाती
अपनी जहां अपना आसमान,
अनुरागी की जीवन बाती
साम,दंड भेद की बदौलत
हजारो सालो से पी रहे लहू
शोषक आक्रमणकारी
नहीं लगी लगाम
लोकतंत्र के युग में भी
आज भी घिनौना खेल है जारी ………
ज़िंदा जलाया जाता है,
थ्रेसर में पिसा जाता है
मान-सम्मान हक-अधिकार
लूटा जाता है
फिर भी रखता है
अनुराग अलौकिक अपनी जहां पर
शोषित दमित दलित
शोषण का जहर पीकर
अपनी जहां में जीता है ………
कल मिलेगा सम्मान,समतावादी समाज
यही होती है इंतजार
पर क्या वो कल नहीं आता
मिल जाती है सपने बोन की सजा
जला दिया जाता है जिन्दा
मुर्दा की तरह
मुर्दाखोर जश्न मनाते
अट्टहास करते है
अपने गुनाह को छिपाने की साजिश रचते है
दलितों को कुत्ता बिल्ली कहते है ………
दलितों कब तक पीओगे
अत्याचार शोषण का जहर
संगठित हो,जागो ,उठो
और आगे बढ़ो
नोंच कर फेंक दो
रूढ़िवादी जाति -धर्म का मुखौटा
कर दो प्रतिकार
अपनी देश अपनी मांटी
अब तो ले लो अधिकार ………
डॉ नन्दलाल भारती 22.10 2015
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