लगाने लगा है
नफ़रत का दरिया विषैला है
भले बिछ रहे हो जबान पर पुष्प
अन्दर भरा कषैला है
यही लूट रहे है
हक़ और सपने
कमजोर के दिल से बस
आह निकलती है
बेबस अनमने मन से
निकल पड़ता है राह अपने
नफ़रत का दरिया विषैला है
भले बिछ रहे हो जबान पर पुष्प
अन्दर भरा कषैला है
यही लूट रहे है
हक़ और सपने
कमजोर के दिल से बस
आह निकलती है
बेबस अनमने मन से
निकल पड़ता है राह अपने
ठगा जा चूका है
शोषित वंचित आम आदमी
भेद की दरिया में डूबा आदमी
बो रहा भ्रष्टाचार
मौका-बेमौका लगा हुआ है
चेहरा बदल -बदल कर डसने .....नन्द लाल भारती ०९.१०.२०१२
शोषित वंचित आम आदमी
भेद की दरिया में डूबा आदमी
बो रहा भ्रष्टाचार
मौका-बेमौका लगा हुआ है
चेहरा बदल -बदल कर डसने .....नन्द लाल भारती ०९.१०.२०१२
No comments:
Post a Comment