Tuesday, October 9, 2012

अकेला हो गया हूँ ................

अकेला हो गया हूँ
लगाने लगा है
आज भी मैं अकेला हूँ ,
कर्म मेरी पहचान है
कर्म पर नाज भी है
मेरी हाजिरी लोगो को
रास आती नहीं
लोग मुझे निर्जीव
रबर की मोहर समझने लगे है
कैसे बन जाऊ
कैसे लोगो के अपमान को
मान मान लू
यही नहीं होता है
कैसे स्वाभिमान का क़त्ल
अपनी आँखों से देखू
स्वाभिमान की परख ने
मुझे विद्रोही बना दिया है
लूट गया हक़ पर
टूटा नहीं हौशला
थके पाँव कर्म पथ पर
अग्रसर हूँ
लोग लगे है नित रचने में
चक्रव्यूह
मै हार कर भी जीतने को तत्पर हूँ
यही मेरा जीवन संघर्ष है
आदमी हूँ पर दोयम का बना दिया गया हूँ
यही मेरी बदनसीबी है
सच तो ये है मै बदनसीब नहीं हूँ
बनाया गया हूँ
भान भी कर्म-विरोधियो को है
पर वे स्वार्थवश रुढिवादिता के
दुशाले में खुद को ऐसे लपेटे है की
उनकी श्रेष्ठता के आगे दूसरा बौना
नजर आता है
लोग ऐसे दूसरे के हक़ पर
गिध्दौरा का जश्न मना रहे है
मै अकेला हो गया हूँ
सचमुच मुझे लगाने लगा है .......नन्द लाल भारती।। 10.10.2012

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