थका-थका बेचैन/कविता खूब बहाया श्रम,
डॉ नन्द लाल भारती 11 .09 . 2013
खूब फूंक-फूंक कर रखा पाँव
अपनी जहां में ,
पर क्या हाशिये के लोगो के हिस्से ,
शोषण,उत्पीडन,भय भूख ,भूमिहीनता
भेद ,निर्धनता और लाचारी ,
ये दीवाने वफ़ा के पर
हाय रेअपनी जहां
हाय रेअपनी जहां
वफ़ा काम ना आयी ,
सुलग रहे अपनी
जहां के लोगो की खफा में ,
जहां के लोगो की खफा में ,
गड़ रहे शूल
अपनी जहा के भेद भरी राहो में ,
अपनी जहा के भेद भरी राहो में ,
शूल छेड़ कर दिल निकल रहे आरपार ,
सूख रहे आंसू आँखों में ,
ना जाने कितनी सदियों से ,
श्रम लूट जहा हक़ छीन रहा
नसीब जिनकी कैदखाने में ,
वंचित -दींन जानकर
डुबोया जा रहा दर्द के दरिया में ,
डुबोया जा रहा दर्द के दरिया में ,
हाथ कुंजी जिसके वही लगे है
हक़ और खजाना हथियाने में
ये अपनी जहां वालो
हाशिये के लोगो की सुधि ले लेते
शोषित-वंचित थका-थका बेचैन,
दीनता,भेदभाव के दर्द से कराहता
दीनता,भेदभाव के दर्द से कराहता
जी रहा जो, अपनी जहां में……।
डॉ नन्द लाल भारती 11 .09 . 2013
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