रहनुमाई का सद्-भाव/कविता
उसकी भी क्या खुदाई है ,
देता है जीवन,सुख-दुःख ,छांव- धूप
इसीलिए उसे खुदा कहते है,
दिखता नहीं ,रहता है
आसपास हर कहीं,
दैविक,दुःख-दर्द को ,
पाठशाला कहा जाता है ,
खुदा का दिया दुःख-दर्द
वक्त की लहर में बह जाता है ,
अदृश्य रहता है पर
खुदा कहा जाता है ,
एक आदमी है उसी का बंदा
खाता है रोटी पीता है पानी
हक़,जमीन पहाड़ तक डकार
रहा है अँधा ,
रहता है साथ-साथ ,
बसता है आसपास ,
रखता है बगल में खंजर
मौंका पाते ही भोंक देता है
बेरहम छाती के अन्दर ,
आदमी का दिया घाव ,
हरा रहता है ,
इसीलिए आदमी को आदमी ,
विषधर कहता है ,
हे खुदा के प्रतिनिधि ,
क्यों बहाते हो लहू , देते हो आंसू
बोते हो नफ़रत
ऐ खुद के बन्दों तुम्हारे दिलों पर
रहनुमाई का सद्-भाव
क्यों नहीं बसता है …………। डॉ नन्द लाल भारती 20.09.2013
उसकी भी क्या खुदाई है ,
देता है जीवन,सुख-दुःख ,छांव- धूप
इसीलिए उसे खुदा कहते है,
दिखता नहीं ,रहता है
आसपास हर कहीं,
दैविक,दुःख-दर्द को ,
पाठशाला कहा जाता है ,
खुदा का दिया दुःख-दर्द
वक्त की लहर में बह जाता है ,
अदृश्य रहता है पर
खुदा कहा जाता है ,
एक आदमी है उसी का बंदा
खाता है रोटी पीता है पानी
हक़,जमीन पहाड़ तक डकार
रहा है अँधा ,
रहता है साथ-साथ ,
बसता है आसपास ,
रखता है बगल में खंजर
मौंका पाते ही भोंक देता है
बेरहम छाती के अन्दर ,
आदमी का दिया घाव ,
हरा रहता है ,
इसीलिए आदमी को आदमी ,
विषधर कहता है ,
हे खुदा के प्रतिनिधि ,
क्यों बहाते हो लहू , देते हो आंसू
बोते हो नफ़रत
ऐ खुद के बन्दों तुम्हारे दिलों पर
रहनुमाई का सद्-भाव
क्यों नहीं बसता है …………। डॉ नन्द लाल भारती 20.09.2013
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