Wednesday, September 18, 2013

सार… & अँधियारा…/कविता …

सार…/कविता आज फिर आँखों के सब्र का
बाँध टूटने को था ,
पलको ने थाम लिया
दिल ने दम भरा
मस्तिष्क कहा रहता
पीछे,
विचार क्रांति का जज्बा
भर दिया ,
उठो कलम थामो
यही तुम्हारे जीवन की
तलवार है ,
जुट जाओ छांटने में,
दर्द,भेद,अत्याचार
यही है ,
परमात्मा की मर्जी
कलम के सिपाही हो ,
शोषित-वंचित हो
पर शिक्षित हो
संघर्ष तुम्हारे
अस्तित्व का सार………17. 09 .2013   

अँधियारा…/कविता

समझा चाँद जिसे
वह पिघला ना तनिक
अपनी जहां से,
समझा सूरज जिसे
 तरक्की  ऊर्जा
समाई जिसमें
जलाया अपनी जहा
उसी ने ,
ना चांदनी रात हुई अपनी
ना हुआ सुहाना दिन हमारा
लूटी नसीब का मैलिक
चीरने निकल पड़ा
थामे कलम हाथ
घनघोर अँधियारा…………।
डॉ नन्द लाल भारती 17. 09 .2013   


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