हे धरती के चाँद सितारों /कविता
कागज के नोटों की ऐसी
कागज के नोटों की ऐसी
पड़ी काली परछाईं ,
आदमी हो रहा बावला ,
बिसर रही वफाई ,
मिलावट,भ्रष्टाचार नफ़रत की ,
ऐसी आग लगी है ,
आदमी को बस दौलत की
भूख बढी है ,
आदमी आदमी का लहू ,
बहाने लगा है ,
मानवता कराहने ,रिश्ता
तार-तार होने लगा है ,
अवसरवादी अनजान ,
बनने लगा है
कपटी चेहरा बदल-बदल ,
ठगने लगा है ,
जानता है पहचानता है ,
मुट्ठी बांधे आये है
हाथ फैलाये निश्चित है जाना ,
कागज की नोटों की चाहत में डूबा
भेदभाव,भ्रष्टाचार को ,
उन्नति है माना ,
दुनिया की सबसे बड़ी दौलत
प्यार, आत्मविश्वास और सच्चे मित्र
खूब बढ़ाओ ये दौलत खुद के प्यारो ,
काल के गाल पर ,
लम्बी उम्र पा जाओगे
करो विश्वास
जीवन फूल कर्म सुगंध
जीवन फूल कर्म सुगंध
हे धरती के चाँद सितारों ………
डॉ नन्द लाल भारती 10 .09 . 2013
डॉ नन्द लाल भारती 10 .09 . 2013
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