छलकते जाम/कविता
झलकते जाम बहकती महफिले
अपनी जहां में किस काम की
पल की मौज नतीजा भयावह
धन का क्षय मन होता पापी
लत बुरी सुख -शांति दहकती
जंगल की आग सी
छलकते जाम बहकती महफिले
किस काम की .................
छलकते जाम बहकती महफिलो का शौक
घर मंदिर की तबाही के कारण
अबोध भूख में रिरकते
छूट जाते विद्या मंदिर से नाते
रिश्ते नाते टूट जाते
महापाप बेवफाई के सबूत साबुत
कलह का कारण भी पुख्ता
कह दो अलविदा प्यारे
कसम तुमहे तुम्हारी शान की
नन्द लाल भारती 14 .5 .2 0 0 1 3
छलकते जाम बहकती महफिले
अपनी जहां में किस काम की ..........नन्द लाल भारती 14 .5 .2 0 0 1 3
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