विचार/कविता
अपनी जहाँ में ना खुले
शोषित आदमी की नन्सिब के ताले
ना रहा कोई उद्यम शेष
गुन सहूर तालीम कर ली हासिल
कैसी योग्यता नसीब पर पड़े है ताले
भेद भरी जहाँ का पोषण क्यों
ये अपनी जहां के रखवाले .............
सदियाँ बीती आये-गए ढेर महान
राम-कृष्ण -वाहे गुरु -महावीर बुध्द भगवन
दुर्भाग्य अपनी जहां का
भभकती रही जाती भेद की आग
नयन पथराये ,ना बदल शोषित का भाग्य
हाड़ रिसता निरंतर चिपका पेट
ऐ अपनी जहां वालो क्यों
लटका दिए शोषित की नसीब पर ताले
जातिवाद के नाम अन्याय क्यों ...?
जबाब क्यों नहीं ये अपनी जहां वाले ..........
जबाब क्यों नहीं ये अपनी जहां वाले ..........
युग बदल पर ना बदली
भेदभाव से पोषित अपनी जहाँ
आदमी अछूत,कुए का पानी अपवित्र यहाँ
कैसे बसेगी तरक्की ...? कैसे ठहरेगा स्व मान
भय भूख का जीवन आफत में जान
अपनी जहां वालो करो विचार
भेद भाव की कुरीति
शोषित जन -राष्ट्र के विकास जड़ दिए ताले
आओ ढहा दे भेद की दीवारे ,चटका दे हर ताले
अपनी जहां में कुसुमित रहे समता सदा
ये अपनी जहाँ के रखवाले ......डॉ नन्द लाल भारती 25.05.2013
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