बात कहता हूँ /कविता
भयभीत आज और कल से भी
सच तभी तो
ज़माने से खौफ खाता हूँ
भय के मोहाने पर बैठा
सच तभी तो
ज़माने से खौफ खाता हूँ
भय के मोहाने पर बैठा
खुदा को पास पाता हूँ
भरोसा है उसी का
तभी तो अपनी बात कह जाता हूँ .
भय में जीना, कोई जीना नहीं यारो
मजबूरियां है ,
भेद भरे जहां में बसर करना है
भेद भरे जहां में बसर करना है
भय में जीने के कई सबूत है यारो
सुलगता भेद का अंगार
ऊँची तालीम लूटी नसीब है यारो
तरक्की से दूर फेंका
मैं भी आदमी हूँ ,
मैं भी आदमी हूँ ,
आदमी होने का दम भरता हूँ ,
लूटी नसीब का आदमी हुआ क्या
दोयम दर्जे का बना दिया गया हूँ ,
बाधित है भेद भरे जहां में रास्ते सारे
कांटे बिछे है सरे-राह हमारे
फिर भी बढ़ने और जीने का
सम्मान संग हौशला रखता हूँ
खुद का बंदा हूँ
आदमी की बोयी खौफ में भी
अपनी बात कहता हूँ ......... डॉ नन्द लाल भारती 17.05.2013

No comments:
Post a Comment