सारे जहां से अच्छा देश हमारा है /कविता
कैसा जहां हो गया है अपना
जान से जो प्यारा है ,
सारे जहां से अच्छा देश हमारा है .
बनी बुराइयां माथे
कलंक यहाँ ,
जातिवाद का प्रकोप
आदमी अछूत यहाँ .
शोषितों की कैद नसीब
सकूं की बयार कहाँ ,
जातिवाद से उपजी महामारी
भेद,भय भूख भ्रष्ट्राचार यहाँ .
वक्त गवाह पलको पर ठहरे
आंसू के भार
तरक्की की बाते बस
पल रहा सदियों से रार .
उखाड़े पाँव युगों से
शोषितों का नहीं हुआ उध्दार .
जीने का आसरा हौशला
शोषितों की पूँजी शेष ,
सरेआम लुटे गए हक़ अपनी जहां में
जीवन साथी उम्मीदों के अवशेष ,
कर्तव्यनिष्ठ हार ना माना शोषित बावरा ,
उम्मीदों की सांस
श्रम की कश्ती जीवन सहारा .
शादियों से उत्पीदित घायल आहे ,
नस-नस कराहे
कैद नस्सेब का मालिक
जीओ -जीने दो सम्मान संग
यही दोहराए .
शोषण,अत्याचार,भेदभाव से दबा
बहुजन हिताय उसका नारा
अनुराग अलौकिक रखता
ईश वंदना जैसे गाता
सारे जहां से अच्छा देश हमारा ...डॉ नन्द लाल भारती 16.05.2013
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