प्यार कहे या सच्चा मदिरापान
ईमान,विश्वास और समर्पण का
जो मिलता किसी दुकान पर नहीं
नसीब कहे या
जन्म-जन्म का प्रारब्ध
बन जाता रोग ऐसा
जिसकी दवा कुछ नहीं...............
देव तुल्य है इंसान वो
जिसकी मन्नते हुई पूरी
रोशन हुआ जहां
मिला खुदा का परसाद
सच्चा प्यार
उसे किसी बला का भय नहीं..............
रार-ना तकरार,बरसे बहार
सर्वस्व समर्पण
तत्पर करने को हर सांस निछावर
मिल गया गंगाजल सा प्यार तो
और चाहिए क्या बस प्यार
कुछ नहीं यार .................
जानता प्यार की मदिरा में
डूबा दीवाना
रेत जैसे उड़ जाती ज़िंदगी
प्यार पाने आग का
दरिया पार करने में
खौफ नहीं खाता...........
भले मुट्ठी में आये कुछ नहीं
कामनाओ के कैनवास पर
मन चाहे रंग भर जाते
विरान जहां में स्वर्ग के सुख उतर आते
रंग बदलती दुनिया में और क्या चाहिए
कुछ भी नहीं
प्यार मदिरा में उतरा जो सच्चे मन
चाहता भी कुछ नहीं..............
मिल गया सच्च्चा प्यार
जीवन सफल,मन आँगन में
हरदम बसंत बहार
भूल गया दीवाना दर्द जहां का
बह चली खुशबू प्यार की
कबूल करो पैलगी हमारी
प्यारे बनो, प्यार बढ़ाओ
ज़िंदगी समय का रेत प्यारे
यहाँ बचता कुछ नहीं.................नन्दलाल भारती ०४.०३.०२०१२
Saturday, March 3, 2012
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