मधुमास उम्र और खुली आँखों के
सपने भी पतझर बनाये गए
ना खता ना गुनाह कोई
ना योग्यता ना तालीम में
खामी कोई
फ़र्ज़ पर फना होने को
तत्पर निरंतर
बस कमी एक हाशिये के लोग
माने गए
लोग ऐसे श्रम की मंदी में
बेधड़क रौंदे गए
पद-दलित ,श्रम और उम्र झराझर
नाम के साथ बद जोड़ा गया
वफ़ा ,त्याग,लहूलुहान हो गया
तालीम,योग्यता,समर्पण के
नूर बेनूर कर दिए गए
उम्र और सपने पतझर के विरान
श्रम और सत्य परेशान
मन आहत पर हार कहाँ
जीवन का ध्येय कर्म पूजा
हाशिये के आदमी को
नीचे रखने का षणयंत्र
निरंतर ....
वाह क्या कर्म और सच्चा श्रम
स्वर्णिम आभा
जहां का माली कद मंद-मंद
सरसता बनो और बनने दो का
गीत गाता बच गया..............नन्द लाल भारती ३१.०३.२०१२
Friday, March 30, 2012
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