वफ़ा को मैंने नसीब माना
क्या मिला....?
रोम-रोम डर जाते है
ऐसा उठा तूफ़ान कि ,
सब राख कर डाला
खता क्या थी समझ ना पाया
बस जिद या जनून
वफ़ा की राह चलने की
हाल -बेहाल नज़र आता है
ज़िंदगी जहर है तो पीना है
कर रहा बसर डूब कर चाह में
रह गया बंद गली का आदमी
आदमी ऐसा दर्द का जहर दे डाला
ना जाने कौन सी खता हुई
जहां में तकदीर लूटी
तस्वीर टूट गयी
मसकत भरे दिन आह भरी रातें
आदमी ,आदमी ना माना
कर्म को ईश आराधना माना
वफ़ा को मैंने नसीब माना
प्यारे जहां में ऐसा उठा तूफ़ान कि
सब राख कर डाला .......नन्द लाल भारती २८.०३.२०१२
Tuesday, March 27, 2012
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