नहीं थमा जीवन सफ़र प्यारे
शरंडो के झरते जुल्म सारे
बचाता गया साबूत
सबका रखवाला
पर ढोने को मिला कमर तोड़
रिसता दर्द ,मशकत
मरते सपनों का बोझ
ज़माने का हर चौराहा
सूना लगा प्यारे ......
जहां चाह वहाँ राह
यही होता है विश्वास और
वंचित गरीब आदमी की थाती
मशकते बहुत चाह सकून
सहने को दर्द तड़पने को बेबस
झरता श्रमनीर झराझर
शरंडो की जोर अजमाईस का
मैदान मिलता
शोषितों की छाती
शरंडो की खूनी प्यास से
छलती रही शोषितों की चाह सारी......
शरंडो की सत्ता और
जोर अजमाईस से
शोषित कभी ना थे बेखबर
छ्ला जा रहा है उनका मंतव्य
बिछ रहे शूल राह निरंतर
कब तक जारी रहेगा सफ़र.................
शूल की सेज पर जीने को
शोषित हो रहा अभ्यस्त
यही नसीब बना दी गयी है
शोषित हाशिये के आदमी की
वह भी दृढप्रतिज्ञ
मंजिल की चाह में खा लिया है
चलते रहने की कसम उम्र भर ..............नन्दलाल भारती ०७.०३.२०१२
Wednesday, March 7, 2012
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