अंखिया ढूंढ-ढूँढ उजियारा
होने लगी है अब बूढ़ी,
चेहरा पर थकावट के बोझ
झुर्रीदार मोटे-मोटे निशान
हारे नहीं आज भी
झराझर श्रम,
खोज-खोज मुस्कान
अर्जक गढ़ रहा पहचान
शरंडो का शोर भयावह
मर्यादा सहमी-सहमी
दरिंदो का दौर बेशर्म
नहीं ममता-समता-सुरक्षा
भय-भेद-भ्रष्टाचार का
डराता मौन ऐलान
अपनी तो सिसकती सुबह
उदासी में दम भरती शाम
चेहरा बदलने में माहिर
आदमी डराता अविराम
सासत में आम-अदने-
आदमी की जान
साजिश का दौर बुरा
नहीं ठहरता इन्सानियत की
तुला पर अब इंसान ..............नन्दलाल भारती ११.०३.२०१२
Saturday, March 10, 2012
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment