अच्छा को बुरा साबित करना
दम्भियों की पुरानी आदत है ,
खूबियों में निकालकर कमियाँ
संघर्षरत नेक आदमी को
निगाहों में गिराया जाता है ,
थम जाए हौशले
मरते रहे सपने
मिट जाए कर्म की सुगंध
कर्मयोगी कहाँ गिरता
गिरकर खड़ा हो जाता है ,
ईमान की राह पर चलने वाला
हारता नहीं हराया जाता है ,
पीठ पीछे भोंकना खंजर
दो मुँहे आदमी की आदत
तभी तो सत्य तंग किया जाता है,
सत्य को झूठ साबित करने वाला
आदमियत का क़त्ल करने वाला
नर पिशाच यारो
नेकी का काम उसे नहीं भाता है ,
रचता चक्रव्यूह कर्मयोगी के खिलाफ
परन्तु कर्मयोगी
काल के गाल पर चन्दन सा
थम जाता है ......नन्दलाल bharati 10.03.2012
Friday, March 9, 2012
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