पुरुषार्थ और कौतुहल भरे
इन्तजार में
पांच दशक पुराना हो गया हूँ
उड़ान भरने और आकाश छूने की
ख्वाहिश पूरी नहीं हो सकी
भेद भरे जहां में आज तक .......
जहां दशको के पुरषार्थ को
आंसू और जख्म मिले है
अभी तक
पंख नोंच-नोंच उखड़े गए
आगे पीछे कुआं और
खाई खोदा गया
ताकि असमय अलविदा कह दू
ऐसा नहीं हो सका
बचाती रही कोई अदृश्य शक्ति .....
लालसा बढ़ती रही और पुरषार्थ भी
ऊँची उडाने भरने के लिए
गफलत और रंजिश के शोर
सपनों के क़त्ल की साजिश
सफल होती रही
शरन्ड़ो और जलौकाओ के
इशारे पर .........
हक़ को बेख़ौफ़ ढाठी
आँख फोड़ने हाथ काटने
रोटी छिनने की शाजिशे भरपूर हुई
हौशले की आक्सीजन पर
ख्वाहिशे कम नहीं हुई ...........
पुरषार्थ के दुश्मनों
शरन्ड़ो और जलौकाओ को
कहाँ पता ख्वाहिशे अंतरात्मा की
उपज होती है
विश्वाश है ख्वाहिशे होगी काबू
खुदा की अदालत में
एक दिन
क्योंकि आस्था के साथ
अनवरत जारी है पुरुषार्थ .........नन्दलाल भारती ..०४.०३.२०१२
Sunday, March 4, 2012
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