ना जाने क्यूं कुछ लोग
दुश्मन मान बैठे हैं,
मेरा गुनाह है तो बस
मैं
देश, आम आदमी, शोषितों-वंचितों के
भले की बात कहता हूँ
यूहि दुश्मन मान लिया गया हूँ...
मेरी कब्र खोदे है,
बुराईयों के खिलाफत में उभरे
मेरे शब्द
रूक गयी मेरी तरक्की
लूट गया हक़ सरेआम
खुशियों पर खूब ओले पड़े
और पड रहे हैं
किन्तु जी बहलाने के लिए मिल गए है
कई उजले तमंगे ...........
सच तो ये है कि मैं और हमारे लोग
कभी विरोधी नहीं रहे
ना नेक आदमी का ना आदमियत का
ना राष्ट्र का ना राष्ट्रीय एकता
ना मानवीय समानता का
फिर भी
मैं और मेरे जैसे लोग
दूध में गिरी मक्खी की तरह
दूर फेंक दिए गए हैं ....
हाँ मैं समर्थक हूँ
जल -जी -जंगल और प्रकृति का
स्व-धर्मी समानता-नातेदारी का
आदमियत-सर्वधर्म सदभावना का
शोषितों-वंचितों के
सामाजिक-आर्थिक उत्थान का
और राष्ट्रधर्म का .......
मैं समझ गया हूँ
मेरी राह फूल तो नहीं
कांटे जरुर बिछेगे
मैं खुश हूँ अपने कर्म से
जो राष्ट्रद्रोह तो कतई नहीं
अन्याय,जातिवाद-धर्मवाद का
सरंक्षण भी नहीं .........
मेरी खुली आँखों के सपनों का
दहन तो हुआ है ,पर गम नहीं
क्योंकि सभी मुट्ठी बांधे आये हैं
हाथ फैलाये जाना है
बस देश ,प्रकृति और
हाशिये के आदमी के हित में ,
स्वर बुलंद करना है
भले ही कुछ निगाहों में
दुश्मन बना रहूँ ..........नन्द लाल भारती ०६.०३.२०१२
Monday, March 5, 2012
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