लूट गया हक़
आज फिर
कंस के मंच पर
छा गया मेरी
महफिल में
मातम
उनकी महफ़िल में
टकराने लगे
जाम यारो ...
बेगुनाही का क्या
सबूत
कैद हुई
नसीब का मालिक
दिल पर घाव लिए
हजारो ...
मैं क्या ------?
यही दर्द ढ़ो रहे हैं
हाशिये के लोग
यही सुलगता
नसीब
हो गया है यारों ...........नन्द लाल भारती ..१०.०१.२०१२
Friday, January 20, 2012
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