हाशिये के आदमी का जीवन
हो गया है
कटी पतंग जैसा ,
कैसे-कैसे लोग
तरक्की के पहाड़
चढ़ रहे ,
दौलत के मीनार
रच रहे
हाशिये का आदमी
पसीना बहता
रोटी आंसू से गीला करता
उपेक्षित जस का तस
तरक्की से दूर फेंका
बाट जोह रहा
देखो दगाबाजो को
दिन दुनी रात चौगुनी
तरक्की कर रहे
देशी रकम से विदेश पाट रहे
हाशिये के आदमी की
उम्मीदों का खून कर रहे
अरे हाशिये के लोगो
अब तो कर दो ललकार
शादियों से क्यों
टुकुर-टुकुर ताक रहे ..नन्द लाल भारती १३.०१.२०१२
Friday, January 20, 2012
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment