आँखों के पानी
तन के रिसने की
अनसुनी हो गयी
कहानी...
खुली आँखे के
सपने
मारे जा रहे
बेख़ौफ़
शेष नहीं निशानी ...
हक़ कत्लेआम
तालीम का जनाजा
कैसे कहू यार
नहीं थंम रहा
नयनो की बाढ़ का
पानी.....नन्द लाल भारती ....१०.०१.२०१२
Friday, January 20, 2012
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