टूटता बिखरता रहा
श्रम से उपजे अर्थ से
कुनबा सींचता
देश विकास में आहुति देता
श्रमिक देवता सपनों की दीया से
अँधियारा सजाता रहा.........................
टूटन-बिखरन के जाल में फंसा
बेगुनाही की फ़रियाद करता रहा
कहा मन में
खंजर रखने वालो को यकीन
वंचित की वफ़ा
तालीम,योग्यता पर भी शक.......................
आतुर लेने को अगिन परीक्षा
बार-बार की कर ले भले
परीक्षा पास
अंगुलिया उठती रहती
कई बदनाम से
खड़ा जसों के पुतला समान
कथित अपजसों कई तलवार पर
नहीं होता ठहराव विश्वाश पर......................
आँख में धुल छोकने वालो कई
जय-जयकार हो रही
दीन-वंचित कई धड़कन
थम रही
जकड़ा है शोषित आदमी के चक्रव्यूह में.......................
उम्मीद है आज भी शोषित को
कल जरुर चलेगी बयार पक्ष में
उठ रही अंगुलिया पर श्रम सच्चा
वंचित आदमी
वफ़ा का सिपाही मन से अच्छा...............................
आदमी के रचे कठघरे में
थरथराता खड़ा है
झेलता शोषण, अत्याचार
महंगाई की मार
नहीं खौलता लहू
नहीं उठ खड़ा होता कोई दर्द में
नहीं उठती आवाज़
गरीब/पीड़ित/वंचित/शोषित के पक्ष में...............नन्दलाल भारती 30.01-2012
Sunday, January 29, 2012
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