भेद भरे जहां में
ना हुआ कोई चमत्कार
ना थमी रार ना तकरार
कर्मयोगी,फ़र्ज़ की राह
कुर्बान होने वाला
उसूलो पर मिटने वाला
लकीरों पर क्या डटता.............?
डटे उन्हें क्या मिला......?
भ्रम-भेद-भय वही से रिसा
ये रिसाव कही का नहीं छोड़ा
कराह-दर्द-आंसू भी ,
भेद की तलवार पर तौला
भ्रम-भेद से बंटवारे का
भूकंप उठा
आदमी होने के सुख से दूर आदमी
भेद खूब फलाफूला
दोषी कौन
हो गयी शिनाख्त
अफ़सोस क्या मिला
मीठाजहर,सुलगता घाव मिला
छिन गया जीवन का सकून
लूट गयी हिस्से की तरक्की
शदियां बित गयी
बाकी है किरन उम्मीद की
भेद बुलाये, मन-भेद मिटायें प्यारे
मिल गए मन , मिट गए भेद सारे
बन गयी हर बिगड़ी बात
मिल जायेगा चैन
रूठी नीद होगी पास
खुल जाएगा बंद विकास का
द्वार हर कोई
इसके अतिरिक्त मेरी
चाहत नहीं और कोई...................नन्दलाल भारती/29.01.2012
Saturday, January 28, 2012
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment