बाट जोह -जोह मर रहे
लोग शादियों से
लोग हमारे ...............
ना बही विकास कि गंगा
ना हुआ कुएं का पानी
पवित्र आज भी राजदुलारे ....
सुलगता दिल प्यासी अंखिया
पेट के भूख कि ना फिकर
असमानता का दर्द
धिक्कारे .............
जाति-धर्म का कैसा रार
ये विष-बीज बोये तकरार
मानव-मानव एक समान
आओ कसम खाए
बोएगे समता सद्भावना के ,
अमृत बीज
शादियों से शोषित उत्पीडित
चहक उठे लोग हमारे ........नन्द लाल भारती ..११.०१.२०१२
Friday, January 20, 2012
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