भरोसा, क्यों,कैसे और किस पर
दुनिया परायी,लोग बेगाने
डंसता गफलतों का दौर
दिल दहलता रंजिशों शोर......................
शरकन्डो का मकड़जाल
हाशिये के लोग तबाह
हाडफोड़ श्रम ,
जीने का जरिया जिनका
थमती नहीं कराह
वफ़ा मकसद गंगाजल जैसा
जिनका....................................
जीवन घर कर बैठा पतझर
क्यों,कैसे और किस पर करें
भरोसा
विकास ठहरा छाती पर
तन से झरता नीर झराझर.................
कैसे थमे भरोसा
नायक जब खलनायक बनते
थोंथा बखान करते
अब ना थकते..................
धोखा- छल की महल अटारी
डराती वैसे,जैसे बकरे को कटारी
सच बात कहू यारों
लोग अब अपने भी ठग लागे
कौन सी दुनिया में भागे.....................
भरोसे का होने लगा मर्दन
दहकता दर्द झुका देता गर्दन
यार जीवन पुष्प
सदकर्म सुगंध
भरोसा बना रहे
भले बढे मंद-मंद...........................
दुनिया और लोग तोड़ते हैं तो
तोड़ने दो भरोसा
हार क्यों मानना.......?
खुद और खुदा का भरोसा सच्चा
जीवन में इस भरोसे के सिवाय
और
कुछ नहीं बचा.................नन्दलाल भारती/28.01.2012
Friday, January 27, 2012
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