Thursday, January 26, 2012

वसीयत कौन और कैसी............... ?

वसीयत कौन और कैसी............... ?
विरासत जब लूट गयी
पुरखों के श्रम से
सजी सोने की चिड़िया
अस्तिपंज़र समाये धरती
चली विरोध की हवा
अधिकारों का हुआ दमन
कब्जे से बेकब्जा
आदमी दोयम दर्जे हो गए
भूख,प्यास,संघर्ष से
रोपे थे खुली आँखों के
सपनों की पौध
वे भी रौंदे गए
कौन सुने निरापद की
ना विरासत बची कोई
ना वसीयत बनी कोई
नूर से बेनूर हुए
कैद नसीब के मालिक रह गए
आंसू, अभाव, दर्द के दलदल में फंसा
ढूढ़ लेता हूँ समय के साथ चलने
और
जीने की वजह कोई ना कोई
ये ज़िन्दगी
तुम्हारी दी गयी
सांस से
तुमसे शिकायत भी क्या
करू कोई........................नन्दलाल भारती 27.01.2012

1 comment:

  1. आंसू, अभाव, दर्द के दलदल में फंसा
    ढूढ़ लेता हूँ समय के साथ चलने
    और
    जीने की वजह कोई ना कोई

    ....बहुत सुन्दर और संवेदनशील प्रस्तुति...

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