इंसान कि तस्वीर कितनी
पिछली से मेल खाती नहीं
आज की तस्वीर अपनी ................
आदमी है कि पद-दौलत
उंच-नीच-अमीर-गरीब की
गांठे बांधे पड़ा है ,
और
अभिमान की तलवार पर खड़ा है
खुद को कहता बड़ा है ........
लहूलुहान कर छाती पर चढ़
आगे निकालने में लगा है
अंधी दौड़ का हथियार
जातिवाद-धर्मवाद-क्षेत्रवाद-भा
बना लिया है .
इन सब के बाद भी वक्त को
धोखा कहा दे पाया है कि आज दे पायेगा ...
एक दिन सारे हथियार फेल हो जाते है
उम्र भी साथ छोड़ने को आतुर हो जाती है
गुमानी चारो-खाना चित हो जाता है
शरंड,जलौका सभी अभिमानी
गिड़ गिडाते है
आंसू बहाते है
गुनाह,अपराध करनी पर अपनी
चेतो खुदा के बन्दे है
भले ही बूढ़ी हो जाए सूरत अपनी
वक्त के गाल पर उजली तस्वीर
टँगी रहे अपनी.................नन्द लाल भारती .. १७.०१.2012
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