ज़िंदगी जीने का नामे
सुख-दुःख,बसंत-पतझर
सूर्योदय की आभा
दोपहर की धुप
सांझ की छांव और आस
बनती-बिगड़ती कहानी का है सार...............
ज़िंदगी का पन्ना-पन्ना
नहीं बांच सका,नहीं बुझ पाया
ज़िंदगी के तार-बेतार
ज़िंदगी बुल-बुला पानी का
खुदा का है उपहार......................
आँख खुली धरती के भगवान् का
छाया था छ्हाया
ख़ुशी ही खुशी,खेलने-खाने की
ख़ुशी पाने और बांटने की
निश्छल था सब इज़हार..............
बचपन साथ छोड़ा
उठने लगा उमंगो का ज्वार
चक्रव्यूह में फंसा ऐसा
जवानी खोयी,लगी सूर्यास्त से आस
समझ ना पाया ज़िंदगी तेरी कहानी
हाथ लगा जो वासना कहू या प्यार.....................
ज़िंदगी तेरे मायने बस चलते रहना
याद रह जाता सुनहरा निशाँ
सद्प्रेम-तकरार,गफलत-रंजिश
खोया-पाया की तू कहानी
डूबती-उम्मीदों चमकते सपनों की बहार...................
जीत-हार,ख्वाबो की दुनिया
दुनिया के बहाव
मोती तलाशता आदमी
हाथ लगता खुला हाथ
तू ही बता जिंदगानी
जीत कहूं या हार.....................
बड़ी हिकमत से रोपे थे सपने
श्रम की खाद पसीने से सींचे
ना बचे सपने,उम्मीदे बह गयी
मझधार
बिन बांचे रह गए जीवन के पन्ने
नाम खोया वही जहा था किरदार
ज़िंदगी चलती कहानी का है सार...........नन्दलाल भारती....01.02.2012
Tuesday, January 31, 2012
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