खूब चले भ्रमकांड
शरंड जलौका के कर
मारते रहे सपने
खुद चढते रहे शिखर .
अदने करते रहे
जीने के अभ्यास
सींचते रहे सपने
रेंग-रेंग कर .
शरंड के विष बाण
जलौका का मीठा जहर
कमजोर के नसीब पर
बरसाते रहे कहर .
लूटी नसीब अदने होते गए
बेनूर और तरक्की से भी दूर
फिर क्या चली ऐसी हवा
शरंड और जलौका के खिलाफ
ना कर सका कोई बाल बांका
ये भ्रम कांड खूब रुलाया
अदानो का ध्यान
चींटियों कि ओर गया
अब क्या अदने भी
टूट पड़े
छीन लिए अपना हक़
शरंड और जलौका के जबड़े से
जो था सदियों से दूर .......नन्द लाल भारती ...१४.०१.२०१२
Friday, January 20, 2012
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