कल मैंने सुना था
एक आदमी को कहते
मैं आदमी हूँ
अफ़सोस पहचान मेरी
आदमी नहीं
जाति-धर्म हो गया है
यह महाठगिनी
तुकडे-तुकडे बाँट चुकी है
आदमी और
खंडित हो चूका है
देश भी
आँख मसलते हुए
वह चिल्लाया
अरे अब तो चेतो
मानव और राष्ट्र धर्म के लिए
मैं निहाल हो गया सुन
अदने आदमी के विचार
आओ एक बार हम सभी
इस मसले पर क्यों ना
करे मन से विचार ....नन्द लाल भारती १२.०१.२०१२
Friday, January 20, 2012
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