skip to main |
skip to sidebar
ऐसा है ये खूनी खंजर
ओहदा दौलत या कोई
और
तूफान का गरजता हो
अभिमान
ऐसा है ये खूनी खंजर
अदने की करता नसीब कैद
आँखों को देता आंसू भयंकर
अभिमान का मान
अभिमानी का करता
कल बंजर.............
बह चले गर यही बल
देश-जनहित,दीन-वंचितों
शोषितों के उत्थान की राह
ऐसा बलशाली
काल के गाल अमर
भामाशाह उभर सकता...........
अफसोस हजार
अदनो को आंसू
जहां को
शिकारगाह समझने वाला
सद-मानव कहाँ बन सकता.........
ठीक है यारों
अभिमानी को बरसाती
नाला समझो
भले ही पार कर दे
सारी हदे.........
नाला कोई पवित्र नदी
नहीं हो सकता..............नन्द लाल भारती/25.01.2012
No comments:
Post a Comment