राहे सफ़र ज़िंदगी का
बाप का शौर्य माई की छांव
डगमगाते पाँव
सफ़र पर निकलने की ललक
एक हाथ बाप दूजे माँ की
अंगुली का सहारा पाया
फिर शुरू राहे सफ़र
पाँव पड़े छाले भी
और पले-बढे अरमान.................................
राहे सफ़र की अजीब है दास्ताँ
राहे सफ़र ऐसा
छूटे सहारे के हाथ
बनते-बिगड़ते रहे निशान
राहे-सफ़र दिया ज़िंदगी का ज्ञान............................
बिना मतलब पूछता नहीं कोई
राहे -जहां
देखता नहीं रुकता नहीं
गिरा कर आगे बढ़ जाता
धकिया कर कोई कर देता किनारे
हो जाता जीवन-जंग का भान................................
कठिन हो भले पर
यही राहे जहां बनती वरदान
कदम बढे चाहे जिस सफ़र
डरता चौराहे का गोलचक्कर
भेलख पड़े तनिक कोई छल जाता
तड़प उठते रिश्ते सारे
मिलन की आस, विरह कोई दे जाता..........................
मुसाफिर हारता कहाँ
भले हो जाए फना
सफ़र-सफ़र है
जोड़ने की अजीब दास्तान..............................
भले छलते रहे रूप बदल-बदल
सफ़र में पड़े चौराहे के गोलचक्कर
राहे सफ़र सुखद सफलताओ का
दौर भी आता सजता सिर मौर
छूट जाते काल के गाल पर
पक्के निशान........................नन्दलाल भारती 04.02.2012
Friday, February 3, 2012
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