कल घायल था,
नयनो में थी
बाढ़ भरपूर प्यारे
गफलत रंजिशो के दौर हजारों
जिद कुछ अच्छा करने की
कुछ लोगो को पसंद ना था
आज भी नहीं है
खैर
कमजोर को आगे बढ़ते,
कुछ अच्छा करते
कौन देखना चाहता है...............?
उम्र के बसंत पतझर बने
जीत हार बनती रही
जिद जीतने की मरी नहीं
संघर्ष-जिद ने गढ़ा आसमान
वक्त ने दिया मान...................
सच है कल अच्छा ना गुजरा
आज भी रह-रह कर
पुराना घाव रिस जाता है
दर्द दहक जाता है
आज भी कुछ ख़ास नहीं
गुजर रहा है......................
भयभीत नहीं
भले कल लहूलुहान था
आज दर्द से उठ रहा है ज्वालामुखी
पतझर हुए बसंत का
दहकता सबूत भी है
जीने के लिए इतिहास बनने के लिए
साथ-साथ चलने वाला
बचा है
खुद पर खुद का भरोसा............नन्दलाल भारती.....19.02.2012
Saturday, February 18, 2012
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