एक बार तो जांच लिया होता
पहचान लिया होता
मेरे तन से झरा पानी
मेरी रग-रग उर्वर
हुआ भरपूर लोचन
भाग्य-दुर्भाग्य के फेरे
हिस्से सूनापन
तेरी दौलत मेरे श्रम की उपज
वाह रे किस्मत
मैं
दुखी वंचित और निर्धन
मर गया तेरे नयनो का पानी
एक बार तो जांच लिया होता
पहचान लिया होता
मेरे तन से झरा पानी................
माटी की दीया तन
बाती सा मेरा मन
तेल सरीखे झरता संचित श्रम
नयनो से बहता पानी
बंधी है मेरे सपनों की डोर
कैसे जीवन ज्योति उम्र
और पायेगी
पी कर नयनो का पानी
एक बार तो जांच लिया होता
पहचान लिया होता
मेरे तन से झरा पानी...............
चाहा था समता का सागर
भर दे तुमने भेद की गागर
त्याग-कर्म पूजा के बदले
क्या मिला
अभिशाप कहूं या वर
विरह का दर्द ढ़ोना बना कहानी
एक बार तो जांच लिया होता
पहचान लिया होता
मेरे तन से झरा पानी.........नन्दलाल भारती...27.02.2012
Sunday, February 26, 2012
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