दूर दृष्टि,पक्का इरादा,
कड़ी मेहनत
और
जनसेवा के सद्भाव से
उठी आगे बढ़ने की ललक
कुछ लोगो को
हजम नहीं हुई...........
पेट में भूख लेकर
पसीने की धार से
सींचे गए सपने
दुनिया के कैनवास पर
उभरने लगे थे
ये निखर कुछ लोगो को
हजम नहीं हुआ...............
शोषित का संघर्ष
विपत्तियों-मुश्किलों के मुंह से
अर्जित तालीम,संघर्ष और
अनुभवों के ललहाते अंकुर
कुछ लोगो को
हजम नहीं हुआ.......
लगने कमजोर की तरक्की
अछूत सरीखे
उठने लगे साजिशों के
ज्वालामुखी
मटियामेट करने के लिए
क्योंकि कुछ लोगो को
छोटे लोगो की तरक्की
हजम नहीं हुआ करती.........
छोटा आदमी कब तक
हलक से उपजी ललक की
हवा पीकर
षडयंत्र का दर्द सहता
श्रम, सद्कर्म,वफ़ा
और इमान के सहारे
भेद भरी दुनिया में
आखिरकार छला गया
एकलव्य की तरह
श्रम,सद्कर्म,वफ़ा,ईमान
खुली आँखों के सपने
और नसीब भी
पर नहीं छल पाया कोई
प्रारब्ध
भले ही शोषित के पसीने की
स्वर्णिम आभा
कुछ लोगो को
हजम नहीं हुई हो...............नन्दलाल भारती/14.02.2012
Monday, February 13, 2012
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