कुछ लोगो को शोषित,वंचित
गिरे अथवा गिराए हुए लोगो को
उठता हुआ देखकर
ना जाने क्यों
उन लोगो की ऐंठने
बलखाने लगती है
जली हुई रस्सी की तरह.......
कुछ लोगो को हजम
नहीं होता
गिरे,संभलते हुए लोगो की
तनिक तरक्की
लोग करने लगते है तानाकशी
और
शुरू हो जाती हैसाजिशे..........
त्याग कठिन श्रम के सहारे सपने सजाते
दबे कुचालो को देखकर
शरंड,जलौका जैसे लोगो के
पेट में दर्द शुरू हो जाता है
गफलत और रंजिशो का
शुरू हो जाता है दौर...........
ऐसे अमानुष लोग जो करते है
दंवरुवा/danwaruwa की खेती
सदमानव कैसे हो सकते हैं...........
मुझे गिरे हुए लोगो को
संभलता,उठता
खोया-पाने का प्रयास
लालसा जगाता है
सोचता हूँ कितने
गिरे हुए है वे लोग
कि सताए,शोषित वंचित
गिरे हुए,दबे-कुचलों की ओर
हाथ नहीं बढाते
उनकी दुर्दशा देखकर
उदास हो जाता हूँ...........नन्दलाल भारती...18.02.2012
Friday, February 17, 2012
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