Monday, February 27, 2012

तर्पण..............

वंचित आदमी,
मरते सपनों का बोझ
उम्मीदों का
खूंटी पर टंगे रहना
हाशिये के लोगो का बस
कर्म ही बनता संबल
युग बीता पर घाव हरी
मन रोता विह्वल
शोषण,जातिभेद दुःख जीवन का
कथा पुरानी
क्या कहूं
चैन छीन लेती घाव पुरानी
हक़ पर वज्रपात
कर्मपथ का दीवानापन
फर्ज का मज़बूत साथ
ले डूबा भाग्य,हक़,कर्मफल
जातीय भेद सकल
उपेक्षित,शोषित बंधा स्वंय
शील के शतदल
जीवन हाशिये के लोगो का
देशहित,सदकर्मो का
समर्पण
साध पुरानी जातिभेद का तर्पण......नन्दलाल भारती 28.02.2012

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